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मिर्ज़ा ग़ालिब की दर्द भरी शायरी
आज की स्टोरी में मिर्ज़ा ग़ालिब की दर्द भरी शायरी का बेहतरीन चुनिंदा कलेक्शन लेकर आएं ।
हर रंज में ख़ुशी की थी उम्मीद बरक़रार,
तुम मुस्कुरा दिए मेरे ज़माने बन गये..
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के खुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है..
हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते..
मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है..
कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीम-कश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता..
शहरे वफा में धूप का साथी नहीं कोई
सूरज सरों पर आया तो साये भी घट गए..
कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते..
नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं..
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी
पढ़िए मिर्ज़ा ग़ालिब की दर्द भरी शायरी की बेहतरीन शायरियां!
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